शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

कायरता, वीरता या बहादुरी

 

          यह क्या हो गया हमें, हमें समझना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए। कानून को अपने हाथ में लेकर कानून की ताकत और प्रशासन के हाथों को कमजोर नहीं करना चाहिए। हमें वही करना चाहिए जो हम देखते आए हैं। अपने बच्चों को भी वही सिखाना है ताकि यह परंपरा कायम रहे, और हम सुरक्षित रहें। हमें पड़ोसियों और अंजान व्यक्तियों को बचाने के लिए अपने-आप को जोखिम में नहीं डालना चाहिए। हमें उनसे क्या मतलब, यहाँ यह भूल जाना चाहिए कि हम भी किसी के पड़ोसी हैं। ऐसे काम पुलिस के भरोसे ही छोड़ना चाहिए भले ही हम यह जानते हों कि पुलिस कुछ नहीं करेगी।  हाँ, हाथ पर हाथ धरे रखने से भी कुछ नहीं होगा। अतः हमें तो बस शांति से आंदोलन करना, सभा करना, जुलूस निकालना, बस यहीं  तक ही अपने को सीमित रखना चाहिए। बहुत हुआ सामाजिक संस्थाओं में, कॉलोनी और कॉम्प्लेक्स में सभा कर प्रस्ताव पारित करना चाहिए और नजदीक के थाने में उसकी एक प्रति भेजनी चाहिए।

          अभी कुछ दिन पहले अखबार में एक खबर पढ़ी जिसके सदमे से मैं अभी तक उबर नहीं पाया हूँ। दिल्ली के अखबार में एक खबर छपी। जिसका मजमून कुछ इस प्रकार का था -  

          दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में श्वेता शर्मा ने मोटर साइकिल के सवार को, जिसने उसकी सोने की चेन छीनने की कोशिश की, बहादुरी से धक्का दे कर गिरा दिया। और त्रासदी देखिये, आस-पास खड़े लोगों ने भी उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया।  इसी प्रकार दीपक दुआ ने रात 10.30 बजे मोडेल टाउन में एक 6 वर्ष की बच्ची को, एक संदिग्ध व्यक्ति द्वारा, अपहरण होने से बचा लिया। अवंतिका मित्तल ने देखा कि एक गाड़ी ने धक्का मार कर किसी राहगीर को बुरी तरह आहत कर दिया है उसने तुरंत एम्ब्युलेन्स को फोन किया, और धैर्य न रखते हुए एम्ब्युलेन्स के आने में देरी होते देख अवंतिका ने अपनी गाड़ी से,  पुलिस की कार्यवाही की चिंता न करते हुए उसे अस्पताल पहुंचाया। आस-पास खड़े लोगों ने समझ से काम लेते हुए उसका साथ नहीं दिया।  इनके अलावा तोशान्त मिलिंद ने जनकपुरी में फोन छीन कर भागते आदमी को पकड़ा। इसी प्रकार छोटे लाल, ऋषि कुमार, मनोज कुमार, रानी तामाङ, विनय सिंह सजवान, सुब्रता समानता, सुभम कुमार, उमेश कुमार आदि की भी ऐसी ही घटनाएँ हैं।

          यह तो एक शहर की ही है। अगर देश भर की ऐसी खबरें इकट्ठी की जाएँ तो अंदाज़ लगाएँ कितनी घटनाएँ जमा हो जाएंगी?

          दशकों पहले जब एक समुदाय के मुट्ठी भर लोग दूसरे समुदाय के मोहल्ले में जाकर तोड़-फोड़, आगजनी और लूट-पाट कर रहे थे, यही नहीं घरों में घुस कर महिलाओं को खींच-खींच कर सड़क पर लाकर उन्हें सरेआम जलील कर रहे थे और जाते समय कइयों को उठा कर भी ले गए तो तब भी हमलोग प्रतिवाद करने की हिम्मत नहीं कर सके। पुलिस और बाहरी सहायता का मुंह जोहते रहे। बाद में जब एक अहिंसा के पुजारी को इसकी खबर मिली तो दूसरे दिन उसने अपने अखबार में छापा कि अहिंसा को अपनाने के बजाय अगर वे आक्रमणकारियों को पकड़ कर वहीं मार डालते तो उन्हें ज्यादा खुशी होती।  पुजारी के साथियों ने इस खबर के लिए उनकी निंदा की और अपने इस सुझाव को वापस लेने का अनुरोध किया क्योंकि इससे दंगा भड़काने की गुंजाइश थी। लेकिन उन्होंने दूसरे दिन अपने साथियों की मुलाक़ात की चर्चा करते हुए फिर से छापा कि

वे अपने फैसले पर अडिग हैं। अहिंसा बहादुरों का हथियार है, बुज़दिलों का नहीं। ऐसी अवस्था में मैं हिंसा को अपना समर्थन दूँगा। यह अहिंसा नहीं कायरता है। वह कौम जो अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकती उसका यही हाल होना है। जो कौम कायर होती है उसका नमो निशान मिट जाता है

          कथा तो पूरी हो गई, लेकिन इसका सार क्या निकला?

अहिंसा के आवरण में अपनी कायरता को ढँकना? या, बहादुरों के रूप में सामना करना और अहिंसा की खुशबू फैलाना?

          आप क्या पसंद करेंगे? चुनाव आपको करना है।

          बहादुरों के रूप में अहिंसा की खुशबू फैलाना अच्छा है, लेकिन अत्याचार को सहने  वाला अत्याचार करने वाले से बड़ा दोषी है। अत्याचार कभी न सहें। 

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यूट्यूब  का संपर्क सूत्र :

https://youtu.be/Icayrm2dMu4

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कायरता, वीरता या बहादुरी

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