शुक्रवार, 9 मई 2025

कैसे बने बेहतर दुनिया?

  


क्या आपने हास (HAAS) स्कूल ऑफ बिज़नेस का नाम सुना है? यह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के अंतर्गत अमेरिका का दूसरा सबसे पुराना बिजनेस स्कूल है जिसकी स्थापना 1898 में हुई थी। आज यहाँ विशेष चहल-पहल है। सत्र की समाप्ति के बाद पुराने छात्रों का बिदाई समारोह है। लेकिन विशेष बात यह है कि समारोह के समापन के बाद गहमा-गहमी कम होने के बजाय बढ़ गई है। लोग प्रस्थान करने के बजाय दल बना कर चर्चा में मशगूल हैं। चर्चा का विषय एक ही है  - भारतीय मूल के छात्र अंगद सिंह पड्डा द्वारा बिदाई समारोह में दिया गया भाषण। इस भाषण ने केवल वहाँ के छात्रों में ही नहीं बल्कि वहां के शिक्षा-जगत में हलचल मचा दी है।  

          पड्डा ने उपस्थित समुदाय से “शांत होकर पूरे ध्यान से उस एक समस्या के बारे में विचार करने” कहा  जो उन्हें “सबसे गम्भीर लगती है... जिसके निदान से हमारी यह दुनिया कुछ बेहतर हो जायेगी।” 

          सभा कक्ष में सन्नाटा छा गया। उन्होंने बताया कि वे अमेरिका में एक सपना लेकर आए थे कि एक दिन सफलता पाकर अपने देश जाकर नशे की समस्या का समाधान कर सकें। सच, यही था उनका सपना। किशोरावस्था में नशे का शिकार होकर अपने दो सबसे अच्छे दोस्तों को मरते देखा था। इसलिए उन्हें इस समस्या का समाधान ढूंढ़ना था। जिन-जिन वे से मिले उनसे एक समस्या के बारे में पूछा जो उनको परेशान कर रही है। उनके सामने समस्याओं का अंबार लग गया।

          उदाहरण के लिए, ओकलैण्ड में एक बच्चा जो स्कूल नहीं जा पा रहा, किसी मुस्लिम महिला को हिजाब के कारण परेशान किया जाता है, एक यहूदी को उसकी टोपी के लिए कठिनाई झेलनी पड़ती है, किसी सिख को पगड़ी के कारण प्रताड़ित किया जाता है, सीरिया में एक पिता मिसाइल हमले से अपने पूरे परिवार को समाप्त होते देखता है, ये समस्याएँ हैं। उन्होंने कहा कि ये वे समस्याएँ हैं, जिनका निराकरण उन्हें करना है।

          वे आगे कहते हैं कि हम सब जानते हैं वह क्या है जो हमें औरों से अलग करता है? हम सब हर एक की सम्पन्नता के बारे में सोचते हैं। यही हमारी पहचान है। हम अपनी शिक्षा का उपयोग सिर्फ अपने हित के लिए नहीं करना चाहते, हम चाहते हैं जो शिक्षा हम पायें, वह इस दुनिया को, जीवन को, बेहतर जगह बनाने के लिए काम आनी चाहिए। हम इस दुनिया को एक करना चाहते हैं। इस समय यहां उपस्थित हर विद्यार्थी की यही भावना है। यही हमारी पहचान है।

          पर दुनिया को एक करने की बात एक अजूबा-सी लगती है, अव्यावहारिक लगती है क्योंकि आज तक दुनिया को एक नहीं किया जा सका। कोई कह सकता है कि दुनिया में कहीं भी लोगों को इस तरह से एक नहीं किया जा सका है? एक क्षण रुकने के बाद वे आगे जोड़ते हैं यदि मैं कहूं कि ऐसा हुआ है तो?

          कल्पना करिये, एक गांव है, भारत का एक सुंदर गांव। वहां के खेतों की कल्पना करें, वहां के घरों के बारे में सोचें। अब एक चीज़ की कल्पना और करें - उन घरों में कोई दरवाज़ा नहीं है, क्या यह सम्भव है? लेकिन हां, ऐसा है। भारत में शनि शिंगनापुर नाम का एक गांव है जहां एक भी घर में कभी ताला नहीं लगता। और यह इसलिए कि वहां के लोगों की मान्यता है कि सीमाओं की कोई आवश्यकता नहीं है, जीवन में भेद-भाव के लिए कोई स्थान नहीं है। सब एक हैं। यही कारण है कि इस गांव में आज तक चोरी की कोई वारदात नहीं हुई। कोई डाका नहीं पड़ा। हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई। इसी भारत में एक और गाँव है – कतरा। राज्य के डीजीपी को भी विश्वास नहीं हुआ। लेकिन जब वे भी वहाँ का दौरा कर आए तब उन्हें भी मानना पड़ा। यहाँ के थाने में, आजादी के 73 सालों में एक भी फ़ौजदारी शिकायत नहीं हुई, एक भी एफ़.आइ.आर. दाखिल नहीं हुई। क्यों? एक बहुत ही सीधा और सरल सा कारण है ‘मैं नहीं हम

          पड्डा आगे कहते हैं, 2017 की कक्षा के मेरे साथियों, मैं आप सबसे पूछता हूं क्या हम अपनी शिक्षा का उपयोग भारत के इस गांव जैसा विश्व बनाने के लिए नहीं कर सकते? आप जानते हैं वह दुनिया कैसी होगी? धर्म के नाम पर कोई बंधन नहीं होगा। हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई जैसा बंटवारा नहीं होगा। कोई किसी की बुराई नहीं करेगा। ऐसी दुनिया बनानी है हमें।”

 

          “कहते हैं, सपने वे नहीं होते जो हम रात को सोते में देखते हैं। सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते। जो मार्टिन लूथर किंग को सोने नहीं देता था। वह था सपना। हम सब जो यहां हैं, सबके पास ऐसा एक सपना है। हमें ऐसा सपना देखना चाहिए। हमारा सपना है कि हम एक ऐसी दुनिया बनायें जहां किसी प्रकार का भेद-भाव न हो। जहां हम सब एक हों। मैं दुनिया को यह बताना चाहता हूं कि बर्कले के हर छात्र के दिल की आवाज़ है यह। हम एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं जहां 'मैं' के लिए कोई जगह नहीं है। वहां सिर्फ 'हम' और 'हमारा' के लिए जगह है। यह है हमारी पहचान, यह हैं हम।”

          अंत में, मैं यह कहना चाहता हूं, आइए, हम सबके लिए समृद्धि कमाएं। आइए, हम सारी दुनिया को एक बनाएं। यही हमारी पहचान है। यही बर्कले की आवाज़ है - 'स्व' से ऊपर उठ कर 'सर्व' की बात करने वाली आवाज़, जो इस दुनिया को बेहतर बनाना चाहती है। हर कोई कुछ धरोहर छोड़ जाने की बात करता है। हमारी धरोहर है ऐसी कक्षा साबित होना जो अच्छा व्यापार ही नहीं जानती थी, बल्कि कुछ अच्छा करने के व्यापार में विश्वास करती थी।

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