(सुरेन्द्र लाल मेहता, अध्यक्ष भारतीय विद्या भवन के लेखन पर आधारित)
गेहूं की बाली में लगते रहे कीड़े
हम खामोश रहे
सफेद कपड़ों में कांपते रहे गांव
हम खामोश रहे
समुद्र में तूफान आया
हम खामोश रहे
ज्वालामुखी विस्फोट हुए
हम खामोश रहे
बादलों से आग की वर्षा हुई
हम खामोश रहे
उसने ली खींच म्यान से तलवार
हम खामोश रहे
कैसे लोग थे हम
हमें बोलने की छूट दी गयी
हम खामोश रहे !
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कितना सटीक लिखा है। हम अभी भी
“खामोश” ही हैं। क्या हमने खामोश रहने का निर्णय ले रखा है?
नहीं। फिर, ऐसा हुआ क्यों? अभी भी ऐसा
क्यों हो रहा है? क्योंकि हम कोई भी प्रबुद्ध निर्णय लेने
में असफल रहे। ऐसा क्यों?
जिस प्रकार
जीवन के लिये सामान्य श्वास लेना एक आवश्यक प्रक्रिया है वैसे ही सफल जीवन के लिये
प्रबुद्ध निर्णय लेना एक आवश्यक प्रक्रिया है।
अधिकांश
लोग सामान्य जीवन इसलिये जीते हैं क्योंकि वे अपने अधिकांश निर्णय प्रबुद्ध रूप से
लेने से बचना चाहते हैं या लेना नहीं जानते। सामान्य तौर पर वे यह तय किये बिना ही, जीवन-रूपी नदी में कूद पड़ते हैं कि उन्हें जाना कहां है।
उन्हें अपने लक्ष्य का पता ही नहीं होता। वे अपना कोई भी लक्ष्य निर्धारित करने
में असफल रहते हैं। परिणामस्वरूप शीघ्र ही वर्तमान समय की घटनाओं, भय और
चुनौतियों में फंस जाते हैं। जब वे जीवन-नदी में किसी चौराहे पर पहुँचते हैं, तब वे प्रबुद्ध
रूप से यह तय नहीं कर पाते कि वे किधर जाना चाहते हैं या उनके
लिये सही दिशा कौन-सी है। प्रायः वे धारा प्रवाह के साथ चलते हुए उन लोगों के समूह
का हिस्सा बन जाते हैं जो स्व-निर्धारित मूल्यों के बजाय परिस्थितियों द्वारा
निर्देशित होते हैं। परिणामस्वरूप, वे भ्रमित हो जाते हैं। वे इस अचेतन अवस्था
में तब तक रहते हैं जब तक कोई तीव्र जल-प्रवाह की ध्वनि उन्हें जगा नहीं देती और उन्हें
यह पता नहीं चलता कि वे एक झरने के कगार पर खड़े है। तब वे किसी ऐसे उपाय की तलाश करने
लगते हैं जो उन्हें इस अशांत पानी में डूबने से बचा सके। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी होती
है। वे अपने जीवन में जिन भी संकटों का सामना कर रहे हैं, उन्हें
कुछ सावधानी और समय पर लिये गये निर्णयों से टाला जा सकता था, जब ये
संकट उनसे बहुत दूर थे।
उन्हें इसकी
अनुभूति ही नहीं है कि हमारा मस्तिष्क निर्णय लेने के लिए एक आंतरिक प्रणाली
विकसित करता है। यह प्रणाली एक अदृश्य शक्ति की तरह काम करती है, जो
हमारे जीवन के हर पल में, हमारे सभी विचारों, कार्यों
और भावनाओं को अवचेतन रूप से निर्देशित करती है। यह प्रणाली विविध वंशावली, साथियों, शिक्षकों, जनसंचार
माध्यमों और बड़े पैमाने पर जातीय संस्कृति जैसे स्रोतों से भी प्रभावित होती है। धीरे-धीरे
हम इस सम्पर्क के अभ्यस्त हो जाते हैं। यह वह अनुकूलन है जो आगे का रास्ता तैयार
करने या जानबूझकर किसी निर्णय के निलंबन हेतु, निर्धारित करने और प्रेरित करने के लिए
उत्तरदायी होता है। हालांकि, हम जीवन में किसी भी क्षण, प्रबुद्ध
निर्णय लेकर, इस प्रणाली को नष्ट भी कर सकते हैं। इसके लिये हमें सबसे
पहले गलत निर्णय लेने के अपने डर पर काबू पाना होगा। क्योंकि साधारणतया डर
ही वह कारण है जिसकी छाया में हम कोई निर्णय लेने से बचते हैं और अपने जीवन को
परिस्थितियों द्वारा संचालित होने के लिये बिना किसी लगाम और दिशा-निर्देश के खुला
छोड़ देते हैं।
इसमें कोई
संदेह नहीं है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी-न-कभी गलत
निर्णय लेगा ही। हमें लचीला होने की आवश्यकता है, परिणामों
को देखकर उनसे सीखना होगा। सफलता वास्तव में अच्छे निर्णय का परिणाम है। अच्छा
निर्णय अनुभव का परिणाम होता है और अनुभव अक्सर बुरे निर्णय का परिणाम होता है।
जब हम जीवन रूपी नदी में बह रहे हैं तो हम निश्चित रूप से कुछ उभरी हुई चट्टानों
से टकराएंगे भी। यही यथार्थवाद है। जब कोई किसी चट्टान से टकराता है, तो
असफलता हेतु स्वयं को दोषी मानने के बजाय, स्मरण रखें कि जीवन में असफलता जैसा कुछ नहीं
होता, केवल
परिणाम होते हैं। आशानुकूल परिणाम सफलता कहलाती है और विपरीत परिणाम, कभी-कभी तो आशा से कम परिणाम
भी, असफलता कहलाती है। यदि वह परिणाम नहीं मिलता जो हम चाहते हैं, तो हमें
इस अनुभव से सीखना चाहिये ताकि हम भविष्य में सटीक निर्णय लेने में समर्थ हो सकें।
सफलता या
असफलता कोई अनुभवहीन तथ्य नहीं है। मार्ग में आने वाले सभी छोटे-छोटे निर्णय ही
समग्र रूप से लोगों के असफल होने का कारण बनते हैं। इसके विपरीत, सफलता
भी छोटे-छोटे निर्णय लेने, स्वयं को उच्च मानक पर रखने के लिए प्रतिबद्ध
होने, योगदान
करने का संकल्प लेने और परिस्थितियों के अधीन होने के बजाय अपनी बुद्धि को जाग्रत
करने की प्रतिज्ञा का परिणाम है। ये छोटे निर्णय ही जीवनानुभव बनाते हैं जिसे हम
सफलता कहते हैं।
चाहे हम
अभी कितने ही गर्त में क्यों न हों, हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिये। ईश्वर
की ओर से देरी उनका अस्वीकार नहीं है। दीर्घकालिक लक्ष्य रखना और प्रयासरत रहना
उचित है। जीवन में कोई भी मौसम हमेशा नहीं रहता क्योंकि पूरा जीवन रोपण, कटाई, आराम और
कायाकल्प का चक्र है। सर्दी अनंत नहीं है। भले ही आज हमारे सामने चुनौतियां हों, हम
वसंत-आगमन की आशा कभी नहीं छोड़ सकते।
अगर आप 70-80
के भी हैं तो ऐसा मत सोचिये कि अब समय निकल चुका है, जब जागे
तभी सवेरा। जो समय बचा है उस पर ध्यान केन्द्रित कीजिये। आज ही संकल्प लीजिये और
प्रबुद्ध निर्णय लीजिये। असफलता का डर मन से निकाल दीजिये,
जगत का सफलतम व्यक्ति भी अनेक बार असफल हुआ है। ईश्वर पर पूरा भरोसा रखिये, परिणाम न मिलने पर भी पूर्ण विश्वास से निर्णय लीजिये।
अगर
निर्णय लेना नहीं सीखे तो ऐसे ही गेहूं की बाली में कीड़े लगते रहेंगे, गाँव कांपते रहेंगे, तूफान आते रहेंगे, विस्फोट होते रहेंगे, आग की वर्षा होती रहेगी, म्यान से तलवार खींचती
रहेगी और हम खामोशी से देखते-देखते मिट जायेंगे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
चैनल को जरूर से
लाइक, सबस्क्राइब और
शेयर
करें।
यू ट्यूब पर सुनें :
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें