हम मानते हैं कि अपने
स्वार्थ के लिये मनुष्य बड़ी चालाकी व होशियारी से दूसरों के साथ अपना काम निकाल लेता है। दूसरों की तकलीफ, उनके दु:खों की परवाह न करके अपनी क्षणिक
प्रसन्नता के लिये, किसी का भी अहित करने में यह ईश्वर की
सर्वोच्च कृति, जो मानवजाति के नाम से जानी जाती है – कोई
संकोच नहीं करती। लेकिन ऐसा करने वालों ने क्या कभी सोचा है कि यही स्थिति उनकी खुद
की भी है? अनेक हैं जो उनकी गिनती भी इन्हीं ‘दूसरों’ में करते हैं? ऐसी
चालाकी करने वाले ये स्वार्थी लोग यह क्यों नहीं सोचते कि ऐसी भी स्थिति आ सकती है
जब दु:ख दूसरों पर न जाकर असफलताओं के फलस्वरूप स्वयं पर ही आ पड़े और दु:खी होना
पड़े? तब तो सारी चालाकी, सारा स्वार्थ
अपने ही जीवन के लिये अभिशाप सिद्ध होगा। सारे कर्म अपने सुख के लिये करने पर भी
हमें बार-बार दु:ख क्यों भोगना पड़ता है? हमें हर समय दूसरों
की चालाकी से सावधान और अपनी चालाकी से दूसरों को तकलीफ देने का जुगाड़ बैठाते रहना
होगा!
अभी कुछ समय पहले ही, वार्ता के दौरान किसी ने टिप्पणी की, ‘गाँव वासी भी अब सीधे-सादे नहीं रहे, बड़े चालक हो गये हैं। उनसे भी संभल कर रहना जरूरी है’। उन्हें चालाक किसने बनाया? अरे! ये हम शहरवासियों
का ही तो काम है। उन भोले-भाले ईमानदार ग्रामीणजन को चालाक हमने ही तो बनाया है? है कि नहीं! इस दयनीय दशा में कौन हमारा साथ दे सकता है? हम स्वयं विचार करें। वही और केवल वही सर्वशक्तिमान जिसके नियमों को हम
भुला बैठे हैं।
यह हम सबों
के जीवन का अपना अनुभव है। अनेक बार हम बहुत मेहनत से अच्छी योजना बनाते हैं, उस पर पूरी ईमानदारी से कार्य करते हैं लेकिन
लगन से काम करने और आशानुकूल मेहनत करने के बाद भी हमें सफलता नहीं मिलती और कई
बार तो असफलता ही हाथ लगती है। हाँ या ना! लेकिन कई बार इसके विपरीत ऐसा भी होता
है कि हमारी योजना उतनी अच्छी नहीं बनती, इस पर कार्य भी
अच्छी तरह नहीं होता, मेहनत भी ज्यादा नहीं करते लेकिन फिर
भी अप्रत्याशित सफलता मिलती है। यानि कभी अच्छी योजना और मेहनत के बावजूद हमें कम
सफलता मिलती है और कभी जल्दी में बनाई योजना और बिना मन के किये गये काम में हमें
ज्यादा सफलता मिलती है।
यानि हमारी
मेहनत, लगन और सफलता के बीच
कहीं कुछ है जो न तो हमें दिखता है और न ही जिस पर हमारा कोई अधिकार होता है। यानि
हम से अंजान कोई दैवीय शक्ति हमारी सफलता और मेहनत के मध्य हमारे कार्य में सहायता
कर रही है या बाधा डाल रही है। ये हमारे अपने कर्म ही हैं जो हमें दिखते नहीं।
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