शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

राष्ट्र के महानायक

  


रामायण और महाभारत के आख्यान केवल उन दो ग्रन्थों तक सीमित नहीं हैं। इनके पात्रों और आख्यानों के आधार पर अनगिनत रचनाएँ हुईं हैं और हो रही हैं। उनके माध्यम से साहित्यकारों ने अपनी बात जनमानस तक बड़ी  सुगमता से पहुंचाया। वैसे ही जनता ने भी उनके विचारों को आसानी से समझा और आत्मसात किया है। यह प्रसंग भगवान राम और शबरी का है। उनके संवाद के माध्यम से कितनी सहजता से अपनी बात स्पष्ट की गई है।

 

“कहो राम, शबरी की झोंपड़ी ढूंढने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?

राम मुसकुराये, “यहाँ तो आना ही था माँ, कष्ट का क्या मोल...?”

“जानते हो राम, तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ जब तुम जन्मे भी नहीं थे। यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो? कैसे दिखते हो? क्यों आओगे मेरे पास? बस इतना ज्ञान था कि कोई पुरुषोत्तम आयेगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।”

राम ने कहा, तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।”

          एक बात बताऊँ प्रभु! भक्ति के दो भाव होते हैं। पहला मर्कट (बंदर) भाव, और दूसरा माजर (बिल्ली) भाव। बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिर न जाये। उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है। यही भक्ति का भी एक भाव है। जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ स्वयं ही उसकी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुंह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना।”

          राम मुसकुरा कर रह गये।

          भीलनी ने पुनः कहा, सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न। कहाँ सुदूर उत्तर के तुम और कहाँ दक्षिण में मैं, तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य और मैं वन की भीलनी, यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम क्यों आते यहाँ?

 

          राम गम्भीर हुए, कहा, भ्रम में न पड़ो माँ। राम क्या रावण का वध करने आया है? अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है। राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है माँ, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने गढ़ा था। जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं, यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है। राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाये तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है। राम वन में इसलिये आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया माँ।

           शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

           राम ने फिर कहा, राम निकला है ताकि विश्व को बता सके कि माँ की अवांछनीय इच्छाओं को भी पूरा करना ही राम होना है। राम निकला है कि ताकि भारत को सोच दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है। राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी  समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाये और खर-दूषण का घमंड तोड़ा जाये। राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं। राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता, राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिये आदर्श की स्थापना के लिये। राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है।

     

शबरी की आँखों में जल भर आया था, उसने बात बदलकर कहा, “बेर खाओगे राम?”

          राम मुस्कुराये, बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माँ।

          शबरी अपनी कुटिया से बेंत की टोकरी में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया। राम और लक्ष्मण खाने लगे तो पूछा, “मीठे हैं न प्रभु!”  

          यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ माँ, बस इतना समझ रहा हूँ कि यहाँ अमृत है। शबरी मुसकुराई, बोली, “सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम, भारत राष्ट्र के महानायक!”

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