शुक्रवार, 21 जून 2024

प्रकाश

 


          परमात्मा को खोजता विभु एक फकीर के पास पहुंचा और फकीर से निवेदन किया, मैं परमात्मा को खोज रहा हूँ। बहुत अँधेरे में जी रहा हूँ, क्या आप मेरा दीया जला देंगे?

          उस फकीर ने कहा, “देख भीतर के दीये को जलाने में जरा समय लेगेगा, साँझ हो गयी है, सूरज भी ढल गया है। उधर उस दीवाल के आले में एक दिया रखा हुआ है, आले से उस दीये को उठा ला और पहले उसे जला।”

          विभु उस दिये को उठा लाया। उसने लाख कोशिश की लेकिन दीया जले ही नहीं। उसने कहा, ये भी अजीब-सा दीया है! ऐसा लगता है इसके तेल में पानी मिला है, बाती पानी पी गई है, तो धुआं ही धुआं होता है। कभी-कभी थोड़ी चिनगारी भी उठती है, मगर लौ नहीं पकड़ती।”

          तब उस फकीर ने कहा, तब दीये से पानी को अलग कर। तेल को छाँट। बाती पानी पी गई है, निचोड़। बाती को सुखा, फिर जला। देख क्या होता है?

          विभु अधीर हो उठा, कहा, लेकिन इसमें तो काफी वक्त लगेगा। इस गोरख-धंधे में तो पूरी रात बीत जायेगी।”

          उस फकीर ने विभु को दीये को छोड़ कर अपने पास बुलाया और कहा, तब उसे छोड़, और इधर आ। तेरे भीतर का दीया भी ऐसी ही उलझन में है। दीया जलाना तो बड़ा सरल है, लेकिन तेल में पानी मिला है। बाती में पानी चढ़ गया है। अब सिर्फ माचिस जला-जला के माचिस को खराब करने से कुछ न होगा। सारी स्थिति बदलनी होगी। दीया तो जल सकता है। लेकिन तू चाहे तब - बाधा तू खुद है। तुझे थोड़ा धैर्य रखना होगा और वह करना होगा जो तू नहीं करना चाहता।”

          हमारी यही स्थिति है। हमने अपने बाती को तेल के बजाय पानी में भिगो रखा है। कितना ही प्रयत्न क्यों न करें हमारा दीपक नहीं जलेगा। दीपक जलाने का काम तो बहुत सरल है, हम जानते भी हैं। लेकिन धैर्य पूर्वक वह काम करना होगा जो हम जानते तो हैं लेकिन करना नहीं चाहते!  

          प्रकाश तो हर दिशा से हमें आलोकित करने के लिए आने को तैयार है, यह तो हम ही हैं जो पर्दा लगाए बैठे हैं।

(210624)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

लाइक करें, सबस्क्राइब करें, परिचितों से शेयर करें।

अपने सुझाव ऑन लाइन  दें।

यू ट्यूब पर सुनें :

https://youtu.be/S74xuIOhZtc

 पुराने लोकेशन  का  लिंक : 

https://maheshlodha.blogspot.com


शुक्रवार, 14 जून 2024

नवजात

 


नवजात

 

          सुविधा, सुरक्षा हम सबको चाहिये। लेकिन अगर वह अति’ से कट कर चलती है तब आत्मघाती साबित होती है। जैसे शीशे से बंद, सुरक्षित कमरे में विकसित हुआ पौधा खुली प्रकृति के आघात नहीं झेल पाता है, घरों के दायरे में पाला-बढ़ा जंगली पशु जंगल के शासन में फंस जाता है, वैसे ही सुविधा-सुरक्षा के अतिरेक में पला बचपन जीवन की कठोरताओं का सामना नहीं कर पाता हैकमरा कृत्रिम है, प्रकृति प्राकृतिक है, सच्चाई हैहमारे बच्चे जितने हमारे हैं उतने ही प्रकृति के भी हैंमें उन्हें प्रकृति से बचाना नहीं, उनमें प्रकृति के साथ जीने की उमंग व साहस पैदा करना है।

          बगीचे में माली नया ही थाफूलों से, बगीचों से, तितलियों व पंछियों से बेहद लगाव था लेकिन था नौसिखुआ। एक दिन उसने देखा कि उसके बगीचे के एक पौधे के पत्तों पर तितली ने कुछ अंडे दिये  हैंउसने यह चमत्कार पहली बार देखा थाअब वह रोज उन अंडों पर नजर रखने लगाअंडे भी अपनी तरह से बनने व बढ़ने लगेमाली का सारा समय उसी गमले में रखे उन्हीं अंडों को निहारते बीततासमय बीतता रहा और माली ने देखा कि अंडे कुछ हलचल करने लगेउन पर कुछ लकीरें उभरने लगींफिर एक दिन उसने देखा कि लकीरों ने दरारों का रूप ले लिया... फिर दरारें कुछ चौड़ी हो गई... अंडे हिलने लगे

          फिर एक दिन तो गजही हो गया.... एक छोटा-सा सिर, जैसे कोई एंटीना हो अंडे से बाहर निकला... वह बहुत धीरे-धीरे बाहर आने लगा... माली की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं रही... मैग्निफ़ाइंग ग्लास से अंडों से निकलते एंटीना को देखने लगायह तितली का प्यूपा था जो अपने खोल से बाहर आना चाह रहा थाबड़ी मेहनत का काम था! अंडे का खोल बहुत कड़ा थाजो बाहर आना चाह रहा था वह बहुत नन्हा, बहुत कोमल, बहुत अशक्त-सा था "इतनी नन्ही सी जान और बाहर आने के लिए इतना कठिन संघर्ष !!", माली परेशान हो गया, “यह बेचारा तो निकलने से पहले ही दम तोड़ देगा!" माली ने सोचा, मैं इसकी थोड़ी मदद कर दूं तो इसका संघर्ष आसान हो जायेगा

          वह उठा और अंडे से बाहर आने का संघर्ष करते प्यूपा की मदद करने की इच्छा से बस, बड़ी कोमलता व सावधानी से उसके खोल को एक चुटकी भर इधर से, एक चुटकी भर उधर से खोल दिया... और लो, प्यूपा आसानी से बाहर निकल आया।   माली संतुष्ट हो, अपनी उपलब्धि पर मुस्काता कोमल प्यूपा को निहारता रहा और सोचता रहा कि कैसे यह बड़ा होगा और जल्दी ही एक चमकीली तितली में बदल जायेगा

 

          लेकिन हुआ तो कुछ और ही। माली देख रहा था कि प्यूपा का सिर कुछ ज्यादा ही बड़ा था जिसे संभालने में उसे परेशानी हो रही थीवह चलता था तो जैसे घिसटता थाजिस बर्तन में माली ने उसे सुरक्षित रखा था उसकी दीवारों पर चढ़ने की कोशिश करता-करता अखिर वह प्यूपा एक सुबह दम तोड़ गया

          माली का सपना टूट गया... 'यह हुआ क्या?', उसने अपने एक अनुभवी माली से पूछाउसने कहा "देखो, अंडे से बाहर निकलने का संघर्ष ही तो उसे इस बाहर की दुनिया के लिए तैयार कर रहा थावह संघर्ष, समझो कि उस प्यूपा की पाठशाला थीबाहर निकलने के उस संघर्ष से लार्वा अपने पंखों में लगातार रक्त भेजता रहता है जिससे उसके पंख मजबूत बनते जाते हैंसिर से लगातार खोल को धक्का मारने से उसका सिर मजबूत बनता रहता है तथा उसका आकार छोटा होता रहता हैजैसे हम मिट्टी के लोंदे को दबा दबा कर आकार देते हैं, बस वैसे ही प्रकृति तितलियों के सिर को आकार देती हैचार सप्ताह के इस जीवन-चक्र के दौरान ही वह लार्वा प्यूपा बनता है और बाहर आकर तितली का रूप लेता हैतुमने उसकी मदद करने की जल्दी में उसे अपंग बना दियाअपंग आदमी का जीवन कितना कठिन होता है। यह तो तितली थीअपंग तितली को प्रकृति कैसे पालती-पोसती? तुमने असमय उसकी मदद कर एक खूबसूरत जिंदगी बरबाद कर दी

          संघर्ष हम सभी की मदद करने आता हैथोड़ा प्रयास, थोड़ी दुश्वारी, थोड़ी मेहनत जीवन बनाने के उपकरण हैंमाली या माता-पिता के रूप में हम अपने बच्चों को जीवन की कठोर वास्तविकताओं और निराशाओं से बचाने में अक्सर वही कर जाते हैं जो उस माली ने कियाहम नहीं चाहते कि हमारे बच्चों को परेशानी हो, कि वे हमारी तरह संघर्ष करेंहम भूल जाते हैं कि वे संघर्ष करते हैं तो बनते हैंहार्वर्ड के मनोचिकित्सक डॉ. डेन किंडलॉन का कहना है कि अत्यधिक सुरक्षा वाले बच्चों को रिश्तों और चुनौतियों का सामना करने में परेशानी होती हैजब हम उनकी अनावश्यक मदद करते हैं तब हम उन्हें कमजोर करते हैं, हम उनको बताते हैं कि वे स्वयं अपनी मदद करने में सक्षम नहीं हैं

         किसान पिता ने अपने बच्चे से कहा: "बेटा, हर दिन खेत में काम करने से फसल पैदा होती है!" उसके मित्र ने उसे टोका: "अरे, इतनी भी मेहनत की जरूरत नहीं हैबेटे को बैठने दो, फसल वैसे ही उग आयेगी" किसान हंसा: “मैं फसल के उगने के लिए नहीं, अपने बच्चे के उगने के लिए खेती करता हूं" जो माता-पिता अपने बच्चों को जीवन संघर्ष से बचाते हैं वे दरअसल बच्चों को अपंग बनाते हैंमाता-पिता का काम बच्चों की ऐसी मदद करना है जिससे वे अपनी मदद करना सीखते जाएं"

सबसे बढ़कर यह कि हम अपने बच्चों से इतना ही प्यार करें कि उनका जीवन संपन्न हो, न कि बहुत आसान हो। यह माता-पिता के लिए बहुत कठिन होता है। हमारा बच्चा यह जरूर जाने कि दुख आयेगा तो उसका मुकाबला बहुत कठिन होता है। लेकिन दुख तो जीवन की सच्चाई है न! हमारा बच्चा यह जरूर जाने कि दुख आयेगा तो उसका मुकाबला कैसे करना है। जो दुख का सामना करना सीख जाता है, वह बच्चा वयस्क हो जाता है। सुख-दुख दोनों शिक्षक बन कर आते हैं। हम एक से सीखें, दूसरे से बचें तो अधूरी शिक्षा होगी हमारी।

जिंदगी संभाल कर रखी, तो पायमाल* हुई,

सड़क पर छोड़ दी, तो  निहाल हुई

*पायमाल = पाँव से रौंदा हुआ

बच्चों के लिए सड़क तैयार करें, बल्कि बच्चों को सड़क के लिए तैयार करें

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

लाइक करें, सबस्क्राइब करें, परिचितों से शेयर करें।

अपने सुझाव ऑन लाइन  दें।

यू ट्यूब पर सुनें :

https://youtu.be/dCaRKpbSqQ8

पुराने लोकेशन  का  लिंक : 

https://maheshlodha.blogspot.com


शुक्रवार, 7 जून 2024

सूतांजली जून 2024

 


अपने भीतर की चेतना और संवेदनशीलता को जाग्रत रखें। जिससे,

हर घटना को गहराई से महसूस कर सकें,

गलत को गलत और अंधेरे को अंधेरा कह सकें ।

यू ट्यूब पर सुनें :

https://youtu.be/nf7b0KVMaS4

ब्लॉग  पर पढ़ें :  

https://sootanjali.blogspot.com/2024/06/2024.html

पुराने ब्लॉग का लिंक :

https://maheshlodha.blogspot.com

बंगाल की संस्कृति (एक चिंतन)

  हम , अपने जीवन में अनेक प्रकार के आयोजनों यथा पारिवारिक , सामाजिक , साहित्यिक , धार्मिक , व्यापारिक , राजनीतिक आदि में शरीक होते हैं।...