नवजात
सुविधा, सुरक्षा हम सबको चाहिये। लेकिन
अगर
वह ‘अति’ से
कट कर चलती
है तब आत्मघाती
साबित
होती
है। जैसे
शीशे से बंद, सुरक्षित कमरे में विकसित हुआ पौधा खुली प्रकृति के आघात नहीं झेल पाता
है,
घरों के दायरे में पाला-बढ़ा जंगली पशु जंगल के शासन में फंस जाता है, वैसे
ही सुविधा-सुरक्षा के अतिरेक में पला बचपन जीवन की कठोरताओं का सामना नहीं कर पाता
है।
कमरा
कृत्रिम है, प्रकृति प्राकृतिक है, सच्चाई है। हमारे
बच्चे जितने हमारे हैं उतने ही प्रकृति के भी हैं। हमें उन्हें
प्रकृति से बचाना
नहीं,
उनमें प्रकृति के साथ जीने की उमंग व साहस पैदा करना है।
बगीचे में माली
नया ही था।
फूलों
से, बगीचों से, तितलियों व पंछियों से बेहद लगाव था लेकिन
था नौसिखुआ। एक दिन उसने देखा कि उसके बगीचे के एक पौधे के
पत्तों पर तितली
ने कुछ अंडे दिये
हैं। उसने
यह चमत्कार पहली बार देखा था। अब वह रोज उन
अंडों पर नजर रखने लगा। अंडे भी अपनी तरह से बनने व बढ़ने लगे। माली
का सारा समय उसी गमले में रखे उन्हीं अंडों को निहारते बीतता। समय बीतता
रहा और माली ने देखा कि अंडे कुछ हलचल करने लगे। उन पर
कुछ लकीरें उभरने लगीं। फिर एक दिन उसने देखा कि लकीरों ने दरारों
का रूप ले लिया... फिर दरारें कुछ चौड़ी हो गई... अंडे हिलने लगे।
फिर एक दिन तो गजब ही हो
गया.... एक छोटा-सा सिर, जैसे कोई एंटीना हो अंडे से बाहर निकला... वह बहुत धीरे-धीरे
बाहर आने लगा... माली की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं रही... मैग्निफ़ाइंग
ग्लास से अंडों
से निकलते एंटीना को देखने लगा। यह तितली का प्यूपा
था जो अपने खोल से बाहर आना चाह रहा था। बड़ी मेहनत का
काम था! अंडे का खोल बहुत कड़ा था। जो बाहर आना चाह
रहा था वह बहुत नन्हा, बहुत कोमल, बहुत अशक्त-सा था।
"इतनी नन्ही सी जान और बाहर आने के लिए इतना कठिन संघर्ष !!", माली परेशान
हो गया, “यह बेचारा तो निकलने से पहले ही दम तोड़ देगा!" माली ने सोचा, मैं इसकी
थोड़ी मदद कर दूं तो इसका संघर्ष आसान हो जायेगा।
वह उठा और अंडे से बाहर आने का
संघर्ष
करते
प्यूपा की मदद करने
की इच्छा से बस,
बड़ी कोमलता व सावधानी से उसके खोल को एक चुटकी भर इधर से, एक चुटकी भर उधर से खोल
दिया... और लो, प्यूपा आसानी से बाहर निकल आया। माली संतुष्ट हो, अपनी उपलब्धि पर मुस्काता
कोमल प्यूपा को निहारता रहा और सोचता रहा कि कैसे यह बड़ा होगा और जल्दी ही एक चमकीली
तितली में बदल जायेगा।
लेकिन हुआ तो कुछ और ही। माली देख रहा था
कि प्यूपा का सिर कुछ ज्यादा ही बड़ा था जिसे संभालने में उसे परेशानी हो रही थी। वह चलता
था तो जैसे घिसटता था। जिस बर्तन में माली ने उसे सुरक्षित रखा
था उसकी दीवारों पर चढ़ने की कोशिश करता-करता अखिर वह प्यूपा
एक सुबह दम तोड़ गया।
माली का सपना टूट गया... 'यह हुआ
क्या?', उसने अपने एक अनुभवी माली से पूछा। उसने कहा
"देखो, अंडे से बाहर निकलने का संघर्ष ही तो उसे इस बाहर की दुनिया के लिए तैयार
कर रहा था।
वह
संघर्ष, समझो कि उस प्यूपा की पाठशाला थी। बाहर निकलने के
उस संघर्ष से लार्वा अपने पंखों में लगातार रक्त भेजता रहता है जिससे उसके पंख मजबूत
बनते जाते हैं।
सिर
से लगातार खोल को धक्का मारने से उसका सिर मजबूत बनता रहता है तथा उसका आकार छोटा होता
रहता है।
जैसे
हम मिट्टी के लोंदे को दबा दबा कर आकार देते हैं, बस वैसे ही प्रकृति तितलियों के सिर
को आकार देती है।
चार
सप्ताह के इस जीवन-चक्र के दौरान ही वह लार्वा प्यूपा बनता है और बाहर आकर तितली का
रूप लेता है।
तुमने
उसकी मदद करने की जल्दी में उसे अपंग बना दिया। अपंग
आदमी का जीवन कितना कठिन होता है। यह तो तितली थी। अपंग
तितली को प्रकृति कैसे पालती-पोसती? तुमने असमय उसकी मदद कर
एक खूबसूरत जिंदगी बरबाद कर दी।
संघर्ष हम सभी की मदद करने आता
है।
थोड़ा
प्रयास, थोड़ी दुश्वारी, थोड़ी मेहनत जीवन बनाने के उपकरण हैं। माली
या माता-पिता के रूप में हम अपने बच्चों को जीवन की कठोर वास्तविकताओं और निराशाओं
से बचाने में अक्सर वही कर जाते हैं जो उस माली ने किया। हम नहीं
चाहते कि हमारे बच्चों को परेशानी हो, कि वे हमारी तरह संघर्ष करें। हम भूल
जाते हैं कि वे संघर्ष
करते
हैं तो बनते हैं।
हार्वर्ड
के मनोचिकित्सक डॉ. डेन किंडलॉन का कहना है कि अत्यधिक सुरक्षा वाले बच्चों को रिश्तों
और चुनौतियों का सामना करने में परेशानी होती है। जब हम उनकी
अनावश्यक
मदद
करते हैं तब हम
उन्हें कमजोर करते हैं, हम उनको बताते हैं
कि वे स्वयं अपनी मदद करने में सक्षम नहीं हैं।
किसान पिता ने
अपने बच्चे से कहा: "बेटा, हर दिन खेत में काम करने से फसल पैदा होती है!"
उसके मित्र ने उसे टोका: "अरे, इतनी भी मेहनत की जरूरत नहीं है। बेटे
को बैठने दो, फसल वैसे ही उग आयेगी।"
किसान हंसा: “मैं फसल के उगने के लिए नहीं, अपने बच्चे के उगने के लिए खेती करता हूं।"
जो माता-पिता
अपने बच्चों को जीवन संघर्ष से बचाते हैं वे दरअसल बच्चों को अपंग बनाते हैं। माता-पिता
का काम बच्चों की ऐसी मदद करना है जिससे वे अपनी मदद करना सीखते जाएं।"
सबसे बढ़कर यह कि हम अपने बच्चों से इतना ही प्यार
करें कि उनका जीवन संपन्न हो, न कि बहुत
आसान हो। यह माता-पिता के लिए बहुत कठिन होता है। हमारा बच्चा यह जरूर जाने कि दुख
आयेगा तो उसका मुकाबला बहुत कठिन होता है। लेकिन दुख तो जीवन की सच्चाई है न!
हमारा बच्चा यह जरूर जाने कि दुख आयेगा तो उसका मुकाबला कैसे करना है। जो दुख का
सामना करना सीख जाता है, वह बच्चा वयस्क हो जाता है। सुख-दुख
दोनों शिक्षक बन कर आते हैं। हम एक से सीखें, दूसरे
से बचें तो अधूरी शिक्षा होगी हमारी।
जिंदगी
संभाल कर रखी, तो पायमाल* हुई,
सड़क
पर छोड़
दी,
तो निहाल हुई।
*पायमाल = पाँव
से रौंदा हुआ
बच्चों
के लिए सड़क तैयार न करें,
बल्कि बच्चों को सड़क के लिए तैयार करें।
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