शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

युद्ध का सच

  


(शशिकांत ने गिद्ध परिवार के माध्यम से युद्ध का मर्मस्पर्शी चित्र बनाया है। चित्रित दृश्य की कल्पना कर घिन सी आई, उल्टी होते-होते बची लेकिन सच्चाई भी यही है। आँखें बंद कर लेने मात्र से सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता।  विश्व में देशों के मध्य चलने वाले युद्धों के बारे में ही नहीं बल्कि शहर, गाँव, मुहल्ले में चलने वाले “युद्धों की बाबत भी सोचिए! हकीकत यही है। जगह-जगह अंतहीन युद्ध चल रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद युद्धों को रोकने के लिए बनी वैश्विक संस्थाओं को विश्व के शक्तिशाली देश अपनी जेब में लिए घूमते हैं और शांति के नाम पर एक-दूसरे के विरोधी पक्ष का सहयोग कर युद्ध को बढ़ावा देते हैं। विश्व की शक्तियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसमें शामिल हैं और अपनी-अपनी गोटियाँ चल रहे हैं। सबों ने नकाब पहन रखे हैं, लेकिन खोजी आँखें सब देख लेती हैं।

 

नर गिद्ध के साथ उसका बेटा मांस नोच रहा था। उसकी मादा गिद्ध मांस नोचने नहीं आयी थीउसने युद्ध के लम्बा चलने की कामना की सिद्धि के लिए उपवास रखा था और सरदार गिद्धों की पूजा करने गयी थीयुद्ध और शांति दोनों उन्हीं के हाथ में था। बालक गिद्ध मानव को धन्यवाद दे रहा था जो एक दूसरे पर बम मारकर उनके लिए महाभोज का आयोजन कर रहे थे। वह सोच रहा था कि मानव कितना दयालु होता जो धन, ज़मीन, भाषा, रंग, नस्ल, धर्म, जाति सबके लिए लड़ता है, कत्लेआम करता है ताकि दूसरे जीवों का पेट भर सके। बेटा बोल रहा था - 'पापा, आदमी नहीं होते तो हमें खाने को नहीं मिलता, कितने अच्छे होते हैं वे। हम तो फिर भी चोंच और पंजों से लड़ते हैं लेकिन वे बेचारे तो बम मारते हैं एक दूसरे के घरों परबहुत अक्लमंद होते हैं, है न पापा ?'


          नर कुनमुनाया और बोला- 'तू फिर सोचने लगा? अक्ल एक बीमारी है, इससे दूर रहा कर। इस अक्ल के कारण ही ये एक दूसरे को मारने के नित-नए अजूबे तैयार करते हैं। जो ज्यादा अक्लमंद था पहले से ज्यादा विनाशकारी बंदूक, गोली, बम बना गया। ताकि आसानी से दूसरे का ज्यादा-से-ज्यादा खून बहा सके। जो ज्यादा दिमागधारी होते हैं खुद को तो बचा कर रखते हैं लेकिन दूसरों की बस्तियों पर बम उनके इशारे से ही बरसाए जाते हैं।

          बेटे ने हंसते हुए कहा- 'पापा बेचारे आदमियों ने अपनी जान दे दी हमारा पेट भरने के लिएउन्हें एक बार थैंक यू तो बोल दोतुम तो आदमियों की तरह भाषण देने लगे'

          बाप ने गुर्राकर कहा- 'आदमियों का खून पिया है तो उनकी ही भाषा बोलूंगालाशों पर खड़े होकर भाषण देने का रिवाज है बेवकूफतुम देखना अभी जो लोग जंग को जारी रखने के लिए जोशीले भाषण दे रहे हैं, वही लोग अमन पर भाषण देने भी आयेंगेदुनिया पर जब उनका दबदबा कायम हो जायेगा तो उन्हें खून-खराबे से नफरत हो जायेगीजंग कराने वाले ही जंग रोकने की अपील करेंगेआदमियों की दुनिया अजीब है बेटा, यहां मारने वालों की पूजा होती है'

          बेटा एक बच्चे की लाश पर बैठकर उसे नोचने लगा। बाप को गर्व था कि बेटा लाशों में फर्क नहीं करता, उसने आवाज़ दी, 'आराम से, अभी लड़ाई लम्बी चलेगी'

          'पापा, बम बच्चों को भी नहीं छोड़ता?', बेटे ने पूछा

          बाप ने घूरते हुए कहा- 'जब बम मारने वालों को बच्चों पर दया नहीं आयी तो तेरी छाती क्यों फट रही है? बम किसी को नहीं पहचानता, अपने मालिक को भी नहीं।

 

          बेटा अभी भी आदमियों के आभार से दबा जा रहा थाउसने एक और सवाल किया- 'पापा, बम मारने वाला मिले तो हम उसको धन्यवाद ज़रूर बोलेंगेमगर पता ही नहीं चलता कि मारता कौन है और मरता कौन ?'

          'बेटा, मरता तो वही है जो हर मौसम में, हर हाल में मरने के लिए बना हैबाढ़, सूखा, महामारी, बीमारी, भुखमरी, इन सबसे जो संयोग से नहीं मरा वह जंग में मारा जाता हैएक गरीब के हाथ में बंदूक पकड़ाकर दूसरे गरीब को गोली मरवाई जाती हैबंदूक और गोली तीसरे की होती है जो जंग में कहीं नहीं दिखतामारने वाला हर जगह होता हैकोई भी मारने वाले की बात नहीं करता'

          बेटे पर अचानक आदमियत का दौरा पड़ गया, 'जो मारे गये उनकी क्या गलती थी ?'

          'कमाल हैअभी तू आदमियों को थैंक यू बोल रहा था, अभी उन्हें कोसने लगाबाघ पकड़ने के  लिए पिंजरे के बाहर बकरी बांध दी जाती है कि नहीं? बकरी की क्या गलती? उसकी गलती यही है कि वह बकरी हैशिकारी और बाघ के बीच में उसका केवल इस्तेमाल होता है, मरती है तो मरे'

          बच्चा बेचैन था, बोला- 'पापा,  एक बात समझ में नहीं आयी युद्ध होते ही क्यों हैं?'

          पापा गिद्ध को पता था कि जानबूझकर सवाल उठाना इस पीढ़ी को पसंद है जबकि सवाल उठाना खतरनाक खेल होता हैउसने हंसते हुए कहा- 'युद्ध नहीं पुत्र मेला कहो, मौत का मेलामेले का आयोजन व्यापारी लोग करते हैं जिसमें उनके माल की खपत हो जाती हैबंदूक, बारूद, बम, मिसाइल, टैंक, तोप, प्लेन इनके व्यापार में अरबों की पूंजी फंसी होती हैखरीदने के लिए कोई तभी तैयार होगा जब उसकी खपत होगीमेला इसीलिए लगाया जाता है कि व्यापारियों का माल बिक जायेमौत का मेला लगाकर पुराना माल खपाया जाता है ताकि नये माल बने, नया घपला हो, नये अवसर पैदा किये जा सकें'

 

          सुनते-सुनते बच्चा थक गया, उसका दिमाग सुन्न होने लगा और उसे नींद आ गई।



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