कहानी और घटना, बहुत फर्क है दोनों में। जहां
कहानी केवल कल्पना है घटना एक यथार्थ है। लेकिन सही अर्थों में क्या यह सत्य है। अनेक कहानियाँ ऐसी हैं जो घटना प्रतीत होती हैं
तो कई घटनायें कपोल-कल्पना होने का आभास देती है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि कौन कह रहा है और कौन सुन
रहा है। एक ही बात किसी के लिये घटना है तो किसी के लिए कहानी।
ऐसी ही एक घटना एक माँ ने
अपने बच्चे के लिये बताई। इस घटना के तीन ही साक्षी हैं – एक माँ खुद, दूसरे उसके पिता और तीसरी उस बच्चे की छोटी
बहन जो इतनी छोटी है कि उसे यह समझ ही नहीं आई होगी। अतः इसका प्रमाण भी नहीं खोजा
सकता है। खैर जो भी है उस माँ के ही शब्दों में मैं आपको बता रहा हूँ – आप ही
बताइये कि यह कहानी मात्र है या घटना हो सकती है।
आज मेरे मुन्ने का पहला 'फुटबॉल' मैच था। शायद अपनी टीम में वह सबसे छोटा था। मात्र छह साल
की उमर से ही मुन्ना काफी अच्छा फुटबॉल खेल लेता है। उसका मैच देखना का मेरा बड़ा
मन था,
पर मेरी छोटी बेटी को यह खेल बिलकुल पसन्द नहीं था,
तो आखिरकार केवल मुन्ने के पापा ही जा सके।
मैच के बाद,
शाम को जब पिता-पुत्र घर लौटे तो मैं काफी उत्तेजित थी और पूछ
बैठी,
"मुन्ना,
तेरा मैच कैसा था?
तू अच्छी तरह खेला न?"
मुन्ने की आंखों में एक अलग ही रौनक थी।
उसका चेहरा खुशी से लाल हो गया था। मेरा प्रश्न सुन कर ही वह मुझसे आकर लिपट गया।
और बड़े उत्साह से बोला, "पता है माँ, मैंने एक 'गोल'
दिया।"
यह सुन कर मेरा दिल खुशी से पागल हो रहा
था। तुरन्त मैंने फिर पूछा, "मुन्ना, मुझे पूरे विस्तार से बता। मुझे तेरी हर एक बात सुननी
है।"
तभी मुन्ने के पापा मेरे नजदीक आये,
और शान्त और धीमी आवाज में बोले,
"तुम्हारे मुन्ने ने एक 'सेल्फ गोल' दिया। मैं चकित रह गयी, ठगी सी बैठी रह गई। मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मुन्ने
से जरूर कोई गलती हो गयी होगी, जान-बूझ कर वह ऐसा कभी नहीं कर सकता। शायद गेंद गलती से मुन्ने
को छूकर उसके ही गोल में घुस गयी होगी।
मुझे शान्त और चिन्तित देख कर मुन्ना
बोला,
"मम्मा,
आप खुश नहीं हो?" मैंने सच में एक गोल दिया। पता है,
मेरे गोल के पहले हम ही जीत रहे थे,
स्कोर था ३-२। फिर मैंने 'गोल' दिया और इसके बाद हम सब जीत गये।"
मुन्ने के इन मासूम
शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया था। मेरी आँखों से अश्रु धारा फूट पड़ी। मैं उसे
एकटक निहारती ही रह गयी और फिर अपने मुन्ने को बांहों में भर कर बोली,
"हां मुन्ना,
आज तूने सचमुच सब को जिता दिया!"
अब आप ही बताइये कि यह कहानी है या घटना!
अगर कहानी है तो,
अपने बच्चों को ऐसे
सु-संस्कृत कीजिये कि यह घटना बन जाये
और अगर घटना है तो,
ऐसी घटनाएँ बार-बार, हर जगह दोहराई जाये
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