पश्चिम बंगाल में काला धुएँ को छोड़ने
वाली टॅक्सी पर कार्यवाही हुई। बंगाल
में ही बेवजह प्रोविडेंट फ़ंड के वर्षों से अटके पैसों का भुगतान एक महीने के अंदर
कर दिया गया। सांसदों द्वारा विदेश यात्रा पर किये जाने वाले अत्यधिक खर्चों पर
रोक लगी।
मध्यप्रदेश में सरकार से इंडियन
चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट के अंतर्गत 38,800 रुपयों में मिलने वाले जिस किट्स
को किसी ने 1,40,000 में खरीदा था, उसे 80,000 रुपए
वापस मिले।
महाराष्ट्र के मुंबई जेल में 4
वर्षों से निलंबित पड़े मोबाइल जैमर्स, महीने भर के अंदर लगा दिये गये। ठाणे
जिले में महाराष्ट्र इम्प्लॉइमेंट गौरंटी स्कीम के अंतर्गत व्याप्त भ्रष्टाचार का
भंडाफोड़ हुआ।
कर्नाटक में एक कॉलेज के प्राध्यापक
को जिसे तीन वर्षों तक बिना एक भी कक्षा के, मासिक 27,490 रुपए का भुगतान किया जा रहा था अन्य कॉलेज
में स्थानांतरित कर दिया गया। जीवन बीमा विभाग ने महीनों से अटकी बीमा राशि
का भुगतान नामांकित व्यक्ति को कर दिया।
गुजरात में पंचायत सोशल जस्टिस कमेटी के गठन में वर्षों से
लगाई जाने वाली बाधा दूर हुई, और अविलंब
कमेटी का गठन हो गया।
छत्तीसगढ़ के एक नागरिक, जिसका नाम बीपीएल की सूची में शामिल नहीं किया जा रहा था, शामिल हुआ।
गुजरात में सरकार से अनुदान मिलने पर भी छात्रों को
नि:शुक्ल शिक्षा न देकर उन्हे मासिक शुल्क देने के लिए बाध्य किये जाने वाले
विद्यालय और शिक्षकों पर कार्यवाही हुई।
छत्तीसगढ़ में गाड़ी विक्रेता और
मोटर कार विभाग के मिलीभगत द्वारा चल रही जालसाजी का भंडाफोड़ हुआ।
दिल्ली के
लोक निर्माण कार्यालय में व्याप्त अनियमिततायेँ प्रकाश में आईं।
ये
घटनाएँ हमारे देश की ही हैं। ये तो बस कुछेक उदाहरण हैं। इसे कराने वाले वे लोग थे
जो मानते हैं कि ‘यहाँ भी हो सकता है’’। लेकिन ‘क्या हमने कभी प्रयास किया
है?’ दुर्जन हमारे भय, स्वार्थ और
निष्क्रियता पर जीता है। अपने डर को बाहर
निकाल कर फ़ेंक दीजिये और फिर देखिये कैसे मौसम बदलता है।
तो हम
करें क्या? हमें अपने अधिकारों का प्रयोग करना
है। सही वक्त पर चुप्पी साधना अत्याचार को बढ़ावा देना है। यह समझना होगा कि अत्याचार
करने वाले से अत्याचार सहने वाला ज्यादा गुनहगार है। अन्धकार काले बादलों के
आने से नहीं, सूर्य के अस्त होने से होता है। अतः काले बादलों से बिना डरे सूर्य को अपना तेज बनाये रखना होगा। अगर हम
ऐसा कर सके तो राम राज्य को कोई भी नहीं रोक सकता।
हम यह गाते हैं:
जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा,
यह भारत देश है मेरा, यह भारत देश है मेरा ।
क्या ऐसा है? नहीं! लेकिन इसके लिए हम कर क्या रहे है? हमारी
नागरिकता केवल एक वोट डालने तक सीमित नहीं है। हम यह समझते क्यों नहीं कि हम 24 X 7 भारत के नागरिक हैं! हमारा अधिकार सिर्फ वोट देने तक सीमित नहीं है
बल्कि उसकी निगरानी रखने की भी है।
यह
तो समझना ही होगा कि ‘कुछ’ होगा तो
किसी के वह ‘कुछ’ करने से ही हो होगा।
कहीं न कहीं, कोई न कोई तो पीछे लगा होगा तभी हमारे देश में
हर खाने की सामग्री पर ‘लाल’ और ‘हरा’ का निशान लगाना शुरू हुआ,
खुदरा विक्रय मूल्य का छापना प्रारम्भ हुआ। अनेक भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर
रोक लगी। जन एवं लोक प्रिय व्यक्तियों द्वारा अंधाधुंध, बिना
जाने-परखे, समर्थन देने वाले विज्ञापनों में कमी आई। ऐसी
घटनायें एक दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में है। वर्ष में केवल एक ही ऐसा कार्य
करें तो प्रशासक, विधायक, संरक्षक को
अहसास कराने के लिए काफी है कि अब वैसे नहीं चलेगा जैसा चलता रहा है।
हमें अपने जान-माल की परवाह होती है, इसलिए हम ऐसा कोई भी
कदम उठाने में हिचकिचाते हैं। लेकिन ऐसे अनेक कार्य हैं जहां बिना जान-माल को खतरे
में डाले हम जागरूक हो सकते हैं और परिस्थितियों को बदल सकते हैं।
ऊपर
लिखे सब कार्य सूचना के अधिकार (राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट) के प्रयोग से हुआ। इसका
प्रयोग बहुत ही सरल और आसान है। न तो जिद्दोजहद है और न ही विशेष खर्च। न जान-माल
का खतरा। अब तो घर बैठे कम्प्युटर या मोबाइल फोन के जरिये भी आवेदन किया जा सकता
है। हम अपने शहर में बैठ कर देश के किसी
भी कोने से सूचना के लिए आवेदन पर सकते हैं। यह सही है कि हमने कई बार अखबारों में
पढ़ा है कि इस नियम का प्रयोग करने वालों को डराया, धमकाया और मारा भी गया है। यहाँ यह बात साफ समझ लेनी चाहिए कि ऐसी अवस्था
केवल उन लोगों की हुई जिनका मकसद राजनीतिक लाभ उठाना, खबरों
से सनसनी फैला कर टीआरपी-धन-नाम कमाना था, या फिर ‘व्यापक’ सुधार में लगे थे। याद रखें उद्देश्य दोष को
मिटाना है, दोषी को नहीं। जब हम दोष के बदले दोषी को मिटाने
में लग जाते हैं तब मीठा और नमकीन दोनों ही चखने के लिए तैयार रहना पड़ता है।
सूचना
के अधिकार का प्रयोग करें। अगर केवल 10 प्रतिशत जनता भी इसका प्रयोग करती है तो सालाना
15 करोड़ आवेदन होते हैं। इसका असर दिखने लगेगा। इसका प्रयोग आसान भी है और गूगल /
इंटरनेट पर इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध भी है। इंटरनेट के अलावा बाज़ार में इसकी
विस्तृत जानकारी देने वाली पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। केवल सूचना की मांग ही अनियमितता
को दुरुस्त कर देती है। अगर इसका प्रयोग करें तब देख पाएंगे कि यहाँ भी काम सही
ढंग से होने लगे हैं।
अगर हम बदलाव चाहते हैं, तब कुछ तो करना ही होगा। सबसे पहले अपनी नहीं किसी और की या
सार्वजनिक समस्या को दुरुस्त करने का प्रयास कीजिये। यह उतना कठिन भी नहीं है
जितना हमें लगता है। यह न सोचें कि मेरे अकेले के करने से क्या होगा? अणु-परमाणु के एक न दिखने वाले कण की ऊर्जा का हमें अंदाज़ है। कुछ समय
पहले हमने कोरोना के न दिखने वाले वाइरस की लीला भोगी है। इस ‘एक’ में अपूर्व शक्ति है इस पर विश्वास रखें, अधिकार का समुचित प्रयोग करें।
~~~~~~~~~~~~
लाइक
करें,
सबस्क्राइब करें,
और परिचितों से शेयर करें।
यूट्यूब का संपर्क सूत्र à
प्रारम्भिक ब्लॉग का चैनल à
https://maheshlodha.blogspot.com/
हमारा
यू ट्यूब चैनल à