महाभारत
में द्रौपदी को एक उग्र, वीर और प्रतिशोधी महिला के रूप में दर्शाया गया
है। लेकिन श्रीमद्भागवतम् में द्रौपदी को
अश्वत्थामा के प्रति, जिसने उसके पांच शिशु पुत्रों,
"उप-पांडवों" की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी थी, जो एक क्रूर और कायरतापूर्ण कृत्य था, के प्रति बहुत दया और क्षमा रखने वाली नारी के रूप में
प्रस्तुत किया गया है।
जब अश्वत्थामा ने पांच उप-पांडवों का नाश कर दिया, तब दुर्योधन भी दुखी हो गया था। उधर द्रौपदी ने कोई बदला लेने वाला शब्द
नहीं कहा, बल्कि केवल रोई और दुख से अभिभूत हो गई। अर्जुन ने
उसके दुख की गहराई को महसूस किया और उससे कहा कि वह अश्वत्थामा को मार देगा।
अर्जुन और कृष्ण अश्वत्थामा का पीछा करते हैं, जिसने "ब्रह्मास्त्र"
का प्रयोग किया हालांकि उसे इस अस्त्र के बारे में केवल आंशिक जानकारी है। अर्जुन
को अपने ब्रह्मास्त्र मिसाइल से इसका मुकाबला करने के लिए मजबूर होना पड़ता है,
जिसके परिणामस्वरूप एक भयानक आग लग जाती है। कृष्ण के विचारों से
सहमत होकर, अर्जुन दोनों मिसाइलों को वापस ले लेता है और
द्रोण के बेटे को बंदी बना लेता है। कृष्ण अर्जुन से द्रौपदी को दिए गए वचन को
पूरा करने के लिए अश्वत्थामा का सिर काटने का आग्रह करते हैं, लेकिन पांडव नायक सुझाव को अस्वीकार कर देता है और अश्वत्थामा को द्रौपदी
के पास ले जाता है। यहाँ परिस्थिति बदल जाती है, अब जो होता
है, उसे देखकर हम अवाक रह जाते हैं।
अश्वत्थामा को उस अवस्था में
- पशु की भाँति बँधा हुआ तथा अपने ही घृणित कृत्य पर लज्जित होकर सिर झुकाए हुए
देखकर कुलीन पांचाली को दया आ गई। दौपदी बंदी
अश्वत्थामा, जो गुरु द्रोण का
पुत्र था, को दण्डवत प्रणाम करती है। द्रोण के पुत्र को
बंधुआ अवस्था में देखकर वह अत्यन्त व्याकुल होकर चिल्ला उठी,
“उसे छोड़ दो! उसे छोड़ दो!
वह ब्राह्मण है तथा हमारे गुरु का पुत्र होने के कारण
आदरणीय भी है। गुरु-पुत्र के रूप में, आप, स्वयं
गुरु द्रोणाचार्य के सम्मुख खड़े हैं.... मैं
नहीं चाहती कि अश्वत्थामा की माता, द्रोण की पतिव्रता पत्नी, अपने पुत्र की मृत्यु के कारण मेरे समान आँसू-भरी हुई
मुखाकृति बनाए।" अर्जुन अश्वत्थामा की शिखा और शिखा-मणि को काटने के बाद उसे छोड़
देते हैं।
द्रौपदी की भावना की सुंदरता,
कुलीनता और उदारता को देखिए, खासकर यह भावना कि अश्वत्थामा की माँ को वैसा दुःख न सहना
पड़े जैसा उसे महसूस हो रहा है। यही है सच्चा परिष्कार और संस्कृति,
न कि कला, कविता या संगीत।
इसे कहते हैं क्षमा। जब
अपराधी आपके सामने दयनीय अवस्था में हो, वह कुछ भी न करने की स्थिति में हो, आप उसके प्राण
भी ले सकते हों और आप के प्रति उसने जघन्य अपराध किया है तब भी आप क्रोधित न हों, सही और गलत का भेद कर सकें, और इस अवस्था में भी जब
आप उसे क्षमा करते हैं तभी क्षमा की शोभा है।
शास्त्र कहते हैं - “क्षमा
वीरस्य भूषणम”, यानि क्षमा वीरों
का आभूषण है। गांधी ने भी कहा है – कमजोर व्यक्ति कभी क्षमा नहीं कर सकता। क्षमा
करना शक्तिशाली व्यक्ति का गुण है।“ रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं -
क्षमा
शोभती उस भुजंग को,
जिसके
पास गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन,
विषरहित
विनीत सरल हो।
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